Monday 21 September 2015

मिर्च

मिर्च  : बड़े काम की चीज है
 
 
मिर्च, नाम आते ही कुछ लोग सी-सी करने लगते हैं तो कुछ लोग चटखारे लेने लगते हैं. हमारे देश में यही तो समस्या है की एक स्वाद के बारे में दो लोगों की राय कभी एक नहीं हो सकती. पर इसमें बेचारी मिर्च का क्या दोष . वह फायदा तो सभी को एक ही जैसा पहुँचाती है. मिर्च सिर्फ तीती या कडवी ही नहीं होती, बहुत सारे रोगों में तो ये किसी बहुत अच्छी मिठाई से भी ज्यादा मीठी होती है. आइये आज इसी को चख कर देख लेते हैं---
 
आपको पता है, इसमें कितने सारे तत्व पाए जाते हैं-
अमीनो एसिड, एस्कार्बिक एसिड, फोलिक एसिड, सिट्रीक एसिड, ग्लीसरिक एसिड, मैलिक एसिड, मैलोनिक एसिड, सक्सीनिक एसिड, शिकिमिक एसिड, आक्जेलिक एसिड, क्युनिक एसिड, कैरोटीन्स , क्रिप्तोकैप्सीन, बाई-फ्लेवोनाईड्स, कैप्सेंथीन, कैप्सोरूबीन डाईएस्टर, आल्फा-एमिरिन, कोलेस्टराल, फ़ाय्तोईन, फायटोफ़्लू, कैप्सीडीना, कैप्सी-कोसीन, आल्फा-एमीरीन आदि.

कमल के फूल

परिचय:

कमल के फूल कीचड़ भरे पानी में खिलते हैं और यह बहुत ही सुन्दर होते हैं। कमल खुशबूदारआकर्षित एवं लाल,गुलाबीसफेद व नीले रंग के होते हैं। कमल के पत्ते ऊपर से हरे और नीचे से हल्के सफेद होते हैं। इसके पत्ते चिकने होते हैं जिससे इस पर पानी की बूंद नहीं ठहरती है। इसके पत्ते के नीचे की डण्डी को कमल की नाल कहते हैं और इसके जड़ को विस कहते हैं। कमल से 5-6 छिद्रों वाली नाल निकलती है जिस पर फूल व पत्ते लगते हैं। कमल के एक फूल में 15 से 20 बीज होते हैं जिसे कमलगट्टे कहते हैं। कच्चा बीज कोमल व सफेद होता है और पककर सूखने पर काले रंग के हो जाते हैं। कमल के फूल मार्च-अप्रैल के महीने में खिलते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार : कमल शीतल और स्वाद में मीठा होता है। यह कफपित्तखून की बीमारीप्यासजलन,फोड़ा व जहर को खत्म करता है। हृदय के रोगों को दूर करने और त्वचा का रंग निखारने के लिए यह एक अच्छी औषधि है। जी मिचलनादस्तपेचिशमूत्र रोगत्वचा रोगबुखारकमजोरीबवासीरवमनरक्तस्राव आदि में इसका प्रयोग लाभकारी होता है।कमल के फूल के और भी है बहुत सारे है फायदे जानने के लिए क्लिक करे

ईसबगोल

परिचय :

ईसबगोल की व्यवसायिक रूप से खेती उत्तरी गुजरात के मेहसाना और बनासकाठा जिलों में होती है। वैसे ईसबगोल की खेती उ.प्र, पंजाब, हरियाणा प्रदेशों में भी की जाती है। ईसबगोल का पौधा तनारहित, मौसमी, झाड़ीनुमा होता है। ईसबगोल की ऊंचाई लगभग 10 से 30 सेमी होती है। ईसबगोल के पत्ते 9 से 27 सेमी तक लम्बे होते हैं। इसका फूल गेहूं की बालियों के समान होता है। जिस पर ये छोटे-2, लम्बे, गोल, अण्डाकार मंजरियों में से निकलते हैं। फूलों में नाव के आकार के बीज लगते हैं। बीजों से लगभग 26-27 प्रतिशत भूसी निकलती है। भूसी पानी के संपर्क में आते ही चिकना लुबाव बना लेती है जो बिना स्वाद और गंध का होता है। औषधि रूप में ईसबगोल बीज और उसकी भूसी का उपयोग करते हैं।

इलायची

परिचय :

इलायची हमारे भारत देश तथा इसके आसपास के गर्म देशों में ज्यादा मात्रा में पायी जाती है। इलायची ठण्डे देशों में नहीं पायी जाती है। इलायची मालाबार, कोचीन, मंगलौर तथा कर्नाटक में बहुत पैदा होती है। इलायची के पेड़ >हल्दी के पेड़ के समान होते हैं। मालाबार में इलायची खुद ही पैदा होती है। मालाबार से हर वर्ष बहुत सी इलायची इंग्लैण्ड तथा दूसरे देशों के लिए भेजी जाती है। इलायची स्वादिष्ट होती है। आमतौर पर इसका उपयोग खाने के पदार्थों में किया जाता है। इलायची छोटी और बड़ी दो प्रकार की होती है। छोटी इलायची कड़वी, शीतल, तीखी, लघु, सुगन्धित, पित्तकर, गर्भपातक और रूक्ष होती है तथा वायु (गैस),

Sunday 20 September 2015

नींबू(Lemon)


गुणों की दृष्टि से बहुत अधिक लाभकारी है। गर्मी के मौसम में नींबू का शरबत बनाकर पिया जाता है। नींबू का रस स्वादिष्ट और पाचक होने के कारण स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है। यह खड़ा होने पर भी बहुत गुणकारी है।

रक्त की अम्लता को दूर करने का विशिष्ट गुण रखता है। त्रिदोष, वायु-सम्बन्धी रोगों, मंदाग्नि, कब्ज और हैजे में नींबू विशेष उपयोगी है। नींबू में कृमि-कीटाणुनाशक और सड़न दूर करने का विशेष गुण है। यह रक्त व त्वचा के विकारों में भी लाभदायक है। नींबू की खटाई में ठंडक उत्पन्न करने का विशिष्ट गुण है जो हमें गर्मी से बचाता है।

लौंग(Cloves)


मलक्का एवं अंबोय के देश में लौंग के झाड़ अधिक उत्पन्न होते हैं। लौंग का उपयोग मसालों एवं सुगन्धित पदार्थों में अधिक होता है। इसका तेल भी निकाला जाता है।

गुणधर्मः लौंग लघु, कड़वा, चक्षुष्य, रुचिकर, तीक्ष्ण, विपाक में मधुर, पाचक, स्निग्ध, अग्निदीपक, हृद्य (हृदय को रुचने वाली), वृष्य और विशद (स्वच्छ) है। यह पित्त, कफ, आँव, शूल, अफरा, खाँसी, हिचकी, पेट की गैस, विष, तृषा, पीनस (सूँघने की शक्ति का नष्ट होना) तथा रक्तदोष का नाश करती है। लौंग में मुख, आमाशय एव आँतों में रहने वाले सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने एवं सड़न को रोकने का गुण है।


           

बेर(Plum)


सर्वपरिचित तथा मध्यम वर्ग के द्वारा भी प्रयोग में लाया जा सकने वाला फल है बेर।
यह पुष्टिदायक फल है, किंतु उचित मात्रा में ही इसका सेवन करना चाहिए। अधिक बेर खाने से खाँसी होती है। कभी भी कच्चे बेर नहीं खाने चाहिए। चर्मरोगवाले व्यक्ति बेर न खायें।

स्वाद एवं आकार की दृष्टि से इसके 4 प्रकार होते हैं।